उल्फ़त के तेरे पैमाने याद हैं
मीटा दीया मैने अपनी हस्ती तुजको भुलाने मैं
वो तेरे ग़म के तराने आज भी मुझे याद हैं
शायद मैं ज़ींदगी के क़ाबील ना रहा
और तेरे नज़राणो ने मौत भी मयस्सर ना होने दी
फ़ीर भी द्ूंदता हूँ अपनो को अपने आप मैं
काश कोई नयी ज़ींदगी दीख जाती .....
This Poem was written by Baba "Vijay Kumar Tiwary". He is one among the best shayari writers i have ever met. Thanks Baba for sending this poem to JustForUU
2 comments:
hey good one man...
shayad mai zindagi ke kabil nahi tha,
Aur tere nazraano ne maut bhi mayassar nahi hone di...
well said "BABA" :)
You said it right Pandey.. :-)
Thanks for the comments..
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